पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥1॥
हिंदी अनुवाद
पिता पुत्र को बचपन में विद्यारूपी बहुत बड़ा धन देता है। इससे पिता ने क्या तप किया? यह कथन ही उसकी कृतज्ञता है।
2. अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः॥2॥
हिंदी अनुवाद
मन में जैसी सरलता हो, वैसी ही यदि वाणी में हो, तो उसे ही महात्मा लोग वास्तव में समत्व कहते हैं।
3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः॥3॥
हिंदी अनुवाद
जो धर्मप्रद वाणी को छोड़कर कठोर वाणी बोले, वह मूर्ख (मानो) पके हुए फल को छोड़कर कच्चा फल खाता है।
4. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते ॥4॥
हिंदी अनुवाद
इस संसार में विद्वान लोग ही आँखों वाले कहे गए हैं। दूसरों के (मूल् के) मुख पर जो आँखें हैं, वे तो केवल नाम की ही हैं।
5. यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः॥5॥
हिंदी अनुवाद
जिस किसी के द्वारा भी जो कहा गया है, उसके वास्तविक अर्थ का निर्णय जिसके द्वारा किया जा सकता है, उसे विवेक कहा गया है।
6. वाक्पटुधैर्यवान् मन्त्री सभायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते॥6॥
हिंदी अनुवाद
जो मंत्री बोलने में चतुर, धैर्यवान् और सभा में भी निडर होता है वह शत्रुओं के द्वारा किसी भी प्रकार से अपमानित नहीं किया जा सकता है।
7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च॥7॥
हिंदी अनुवाद
जो (मनुष्य) अपना कल्याण और बहुत अधिक सुख चाहता है, उसे दूसरों के लिए कभी अहितकारी कार्य नहीं करना चाहिए।
8. आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः॥8॥
हिंदी अनुवाद
आचरण (मनुष्य का) पहला धर्म है, यह विद्वानों का वचन है। इसलिए सदाचार की रक्षा प्राणों से भी बढ़कर करनी चाहिए।