Sanskrit Class 10 Chapter 4 शिशुलालनम् Summary



1. (सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गों तापसौ कुशलवी)

विदूषकः – इत इत आयौं!
कुशलवी – (रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशल महाराजस्य?
रामः – युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव। भवतो: किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्श। (आसनार्धमुपवेशयति)
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्मादङ्क-व्यवहितमध्यास्यता सिंहासनम्। (अङ्कपवेशयति)
उभौ – (अनिच्छा नाटयतः) राजन्!
अलमतिदाक्षिण्येन।
रामः – अलमतिशालीनतया।

हिंदी अनुवाद
(श्रीराम सिंहासन पर बैठे हैं। उसके बाद विदूषक से उपदेश दिए जाते हुए (बातचीत करते हुए) तपस्वी कुश और लव प्रवेश करते हैं।)
विदूषक – हे आर्य! इधर से-इधर से।
कुश-लव – (राम के पास जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराजा की कुशलता है?
राम – तुम्हारे दर्शन से कुशल जैसा हूँ। क्या दोनों के कुशलता के प्रश्न का ही मैं यहाँ पात्र हूँ, फिर अतिथि के गले लगाने का औचित्य नहीं है। (आलिंगन करके) अरे हृदय को ले लेने (छू लेने) वाला स्पर्श है।
(आधे सिंहासन पर बैठा लेते हैं)
दोनों – निश्चय से यह राजा का सिंहासन है, यहाँ (हमारा) बैठना उचित नहीं है।
राम – रूकावट के साथ आचरण करना चरित्र के लोप का कारण नहीं होता तो हृदय के (गोद के) समीप होने के कारण सिंहासन पर बैठो।
(गोद में बैठाते हैं)
दोनों – (अनिच्छा को प्रकट करते हैं) महाराज!
अधिक कुशलता (उदारता) न करें।
राम – बहुत =धिक शालीनता (शिष्टता) न करें।

2. भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्॥

हिंदी अनुवाद
बच्चा अपनी आयु के कारण से गुणों से महान लोगों के (में) भी लालन के योग्य ही तो है। चन्द्रमा भी बालभाव की सुन्दरता के कारण से शिवजी के मस्तक के केतकी के पुष्पों से बने जूड़े का रूप धारण कर लेता है।

3. रामः – एष भवतोः सौदर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि-क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोवंशस्य कर्ता?
लवः – भगवन् सहनदीधितिः।
रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ?
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?
लवः – भ्रातरावावां सोदयौं।
रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
लवः – आवां यमलौ।
रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम्?
लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि गुरुचरणवन्दनायाम्……………..
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।

हिंदी अनुवाद
राम – यह आप दोनों ही सुन्दरता को देखने से उत्पन्न कुतूहल के कारण पूछता हूँ-क्षत्रिय कुल के पितामह सूर्य अथवा चन्द्रमा में (से) कौन आपके वंश का कर्ता (पूर्वज) है?
लव – भगवान् सूर्य।
राम – कैसे हम दोनों एक समान कुल (वंश) में पैदा होने वाले हो गए हैं?
विदूषक – क्या दोनों का एक ही उत्तर है?
लव – हम दोनों सगे भाई हैं?
राम – शरीर की बनावट एक जैसी है। आयु में भी कुछ अन्तर नहीं है।
लव – हम दोनों जुड़वे हैं।
राम – अब ठीक है। क्या नाम है?
लव – आर्य की वन्दना में लव इस प्रकार अपने आपको सुनाता हूँ (कुश को निर्देश करके) आर्य भी गुरुचरणों की वन्दना में………..
कुश – मैं भी कुश इस तरह अपने आपको सुनाता हूँ।

4. रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः।

किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?
लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन?
लवः – उपनयनोपदेशेन।
रामः – अहमत्रभवतोः जनक नामतो वेदितुमिच्छामि।
लवः – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो महात्म्यम्।
कुशः – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
रामः – कथ्यताम्।
कुशः – निरनुक्रोशो नाम….
राम: – वयस्य, अपूर्व खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्तय) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति?
कुश: – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
कुशः – यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति-निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्सयति।

हिंदी अनुवाद
राम – अरे! यह उदात्त और सुन्दर आचरण है। आप दोनों के गुरु जी का क्या नाम है?
लव – निश्चय से भगवान वाल्मीकि।
राम – किस सम्बन्ध से? (किस नाते से)
लव – उपनयन (यज्ञोपवीत/जनेऊ) के उपदेश के कारण से।
राम – मैं आप दोनों के पिता को नाम से जानना चाहता हूँ।
लव – मैं इनका नाम नहीं जानता हूँ। न कोई इस तपोवन में उनका नाम लेता है।
राम – अरे! महानता।
कुश – मैं उनका नाम जानता हूँ।
राम – कहो।
कुश – निर्दयी नाम………….
राम – मित्र, निश्चय से यह विचित्र नाम है।
विदूषक – (सोचकर) तो ऐसे ही पूछता हूँ। निर्दयी यह कौन बोलता है?
कुश – माँ।
विदूषक – क्या क्रोधित होकर ऐसा बोलती हैं अथवा स्वाभाविक रूप से?
कुश – यदि हम दोनों के बालपन से उत्पन्न कुछ उद्दण्डता देखती हैं तो ऐसे फटकारती हैं-निर्दयी के पुत्रो, चंचलता मत करो।
विदूषक – यदि इन दोनों के पिता निर्दयी नाम वाले हैं ता इनकी माता उनेक द्वारा अपमानित एवं निकाल दी गई हैं। अतः इस वचन से बच्चों को धमकाती है।

5. रामः – (स्वगतम्) धिङ् मावेवंभूतम्। सा ततस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभैरक्षरैर्निर्भर्त्सयति।

(सवाष्पमवलोकयति)
रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयो मतो वेदितुमिच्छामि। न युक्त च स्वीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः?
विदूषकः – (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम् ) किं नामधेया युवयोर्जननी?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव?
लवः – तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वालमीकिर्वधूरिति।
रामः – अपि च इतस्तावद् वयस्य! मुहूर्त्तमात्रम्।
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
रामः – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः?
(नेपथ्ये)
इयती वेला सजाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते?
उभौ – राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः – मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः।

हिंदी अनुवाद
राम – (अपने मन में) ऐसे हुए (सीता को निकालने से) मुझको धिक्कार है। वह तपस्विनी (सीता) मुझसे किए गए अपराध से अपनी सन्तान को इस प्रकार क्रोध भरे शब्दों से धमकाती है। (नेत्रों में आँसू के साथ देखते हैं)
राम – यह यात्रा बहुत लम्बी और कष्टदायी है। (विदूषक को देखकर परदे के पीछे) कौतूहल वश घिरे हुए इनकी माता को नाम से जानना चाहता हूँ और स्त्री से संबंधित कार्य (पूरा परिचय जानना) उचित नहीं है। विशेषकर तवोवन में तो यहाँ क्या उपाय है?
विदूषक – (परदे के पीछे) मैं फिर से पूछता हूँ। (प्रकट रूप में) तुम्हारी माता किस नाम वाली है?
लव – उनके दो नाम हैं।
विदूषक – कैसे?
लव – तपोवन निवासी उनको देवी नाम से बुलाते हैं, भगवान वाल्मीकि बहू के नाम से।
राम – मित्र तो और इधर भी थोड़ी देर के लिए।
विदूषक – (पास जाकर) आप (महाराज) आज्ञा दीजिए।
राम – इन दोनों कुमारों का और मेरे परिवार का विवरण पूरी तरह समान है? (परदे के पीछे से)
इतना समय हो गया रामायण के गाने का कार्य क्यों नहीं किया जा रहा है?
दोनों – महाराज। गुरुवर के दूत हमको जल्दी करने के लिए कह रहे हैं।
राम – मुझे भी गुरुवर का आदेश सम्माननीय (मानने योग्य) है। क्योंकि

6. भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः।।

हिंदी अनुवाद
आप दोनों के द्वारा गाया जाने वाला यह विवरण (कथा) अति वयोवृद्ध (पुराण) व्रतों के सागर कवि विद्वान भगवान वाल्मीकि की रचना है। इसकी वाणी धरती पर प्रथमवार उतरी है। यह कथा भगवान कमल नाभि विष्णु से सम्बन्धित है। इस तरह निश्चय से यह संयोग श्रोताओं को पवित्र व आनन्दित करता है।

7. वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः, प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेद विहरणं कृत्वा अपनयामि। (इति निष्क्रान्ताः सर्वे)

हिंदी अनुवाद
हे मित्र! यह मनुष्यों में सरस्वती के अवतार अनोखे (विचित्र) हैं, तो मैं साधारण हृदयशील लोग की तरह सुनना चाहता हूँ। सभासद शान्त हो, लक्ष्मण को हमारे पास भेज दो, मैं भी इन दोनों के समाने बहुत देर से आसन पर बैठने से दुःख को घूम करके हटा रहा हूँ। (इस प्रकार से सब निकल गए)


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